मसूरी। भाई दूज का पवित्र पर्व पहाडों की रानी मसूरी में पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ मनाया गया।

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मसूरी। भाई दूज का पवित्र पर्व पहाडों की रानी मसूरी में पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ मनाया गया।इस मौके पर बहिनों ने अपने भाईयों को तिलक लगाकर नारियल दिया व उनकी खुशहाली की कामना की वहीं भाईयों ने भी अपनी बहनों की सुरक्षा का वचन दिया व उनके परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। पांच दिवसीय दीपोत्सव के अंतिम दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाने की परंपरा होती है। कहा जाता है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को घर पर आमंत्रित किया था और स्वागत सत्कार के साथ टीका लगाया था, तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती है। स्कंद पुराण में भातृ द्वितीया यानी भाई दूज के बारे में बताया गया है कि, कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने अपने घर में पूजन करके भाई यम यानी यमराज का सत्कार किया था और अपने हाथों से भोजन बनाकर भाई को भोजन करवाया था। भाई दूज के अवसर पर यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया था कि जो भी भाई यम द्वितीया के दिन अपनी बहन से टीका लगवाएगा और बहन के हाथों से बना भोजन करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। ऐसी मान्यता है आज के दिन जो भाई-बहन मथुरा में यमुनाजी के विश्राम घाट पर स्नान करते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। वही एक पौराणिक कथा के अनुसार भाई-बहन के इस पवित्र पर्व के कारक सूर्यदेव की पुत्री यमुना और पुत्र यमराज हैं। भगवान सूर्य देवता और उनकी पत्नी संज्ञा के एक पुत्र यम और पुत्री यमुना दो संतान थीं। देवी संज्ञा अपने पति सूर्यदेव के ताप को सहन कर सकें इसलिए वह सूर्यदेव के पास अपनी छाया को छोड़कर खुद तप करने चली गईं। देवी छाया से दो और संतानें ताप्ती और शनि का जन्म हुआ। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम और यमुना में बहुत प्रेम था। देवी छाया यम तथा यमुना से बुरा व्यवहार करने लगीं। इससे दुखी होकर यम ने यमपुरी नामक अपनी एक नई नगरी बसाई और वहां चले गए। यमपुरी में यम को पापियों को दण्ड देने का काम करते देखकर यमुना गोलोक आ गईं। शास्त्रों के अनुसार यमुनाजी अपने भाई यम से बड़ा स्नेह करतीं थीं, वे अपने भाई यम से बार-बार आग्रह करती कि वह उसके घर आयें और भोजन करें। चाहते हुए भी यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण बहन यमुना के घर नहीं जा पाते। बहुत समय बीत जाने पर एक दिन यम को बहन यमुना की बहुत याद आई और उन्होंने बहन के घर जाने की ठान ली। यम ने अपने दूतों से यमुना को ढूंढ़ने के लिए कहा, लेकिन उन्हें तलाशने में दूत सफल नहीं रहे तब यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहाँ विश्राम घाट पर यमुना जी से भेंट हुई, भाई को देखते ही यमुना ने भावविभोर होकर उनका बड़ा स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें अनेकों प्रकार के परम स्वादिष्ट व्यंजन  भोजन में परोसे। इससे यमदेव बहुत प्रसन्न हुए और बहन से कहा-बहन आज तुम कोई भी मनोवांछित वर मांग लो, बहन यमुना के मन में कलयुग में जन कल्याण की चिंता हुई और उन्होंने कहा, भैया मुझे वरदान दो कि जो भाई-बहन यम द्वितीया के दिन मेरे जल में स्नान करें उन्हें यमलोक की कठोर यातनायें न सहन करनी पड़े। जनकल्याण के लिए अपनी बहन की ऐसी इच्छा देख यमदेव ने कहा तथास्तु ऐसा ही हो परन्तु जो भाई अपनी बहन का तिरस्कार करेंगें या उन्हें बार-बार अपमानित करेंगें उन्हें मैं यमपाश में बाँधकर यमपुरी ले जाऊँगा। लेकिन फिर भी यदि वह तुम्हारे जल में स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य देगा तो उसे स्वर्गलोक में स्थान मिलेगा। जिस दिन मृत्यु के देवता यम यमुना से मिलने आए वह कार्तिक शुक्ल द्वितीया का दिन था, तभी से ऐसा माना जाने लगा कि जो भाई बहन इस दिन हाथ पकड़ कर यमुना में डुबकी लगाएंगे उन्हें नरक से मुक्ति मिल जाएगी। यही कारण है कि सदियों से भाई-बहन आज भी यानि भाई दूज के दिन यमुना नदी में एक साथ डुबकी लगाने के लिये आते हैं।

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